राजा जयचंद का इतिहास। राजा जयचंद की कथा

राजा जयचंद का इतिहास। राजा जयचंद की कथा

Jaichand kaun tha aur jaichand ki mrityu kaise Hui

जयचंद कौन थे तथा जयचंद की मृत्यु कैसे हुई 

Jaichand history in Hindi


जयचंद्र, जिन्हे जयचंद (1170-1194) के नाम से भी जाना जाता है, कन्नौज के एक गहड़वाल शासक थे। इन पर अक्सर भारत में इस्लाम लाने का आरोप लगाया जाता है। 

जयचंद उत्तरी भारत में गहड़वाल वंश के एक राजा थे। शिलालेखों में, इन्हे जयचंद्र के नाम से भी संबोधित किया गया है। यह गंगा के मैदानों में अंतर्वेदी क्षेत्र के शासक थे। इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहर कन्याकुब्ज, वाराणसी या बनारस थे जो कि जयचंद के राज्य के अंतर्गत आते थे। जयचंद के अधिकार क्षेत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के कुछ हिस्से भी शामिल थे। इन्हें गहड़वाल वंश का अंतिम शासक माना जाता है। इतिहास के स्रोतों से इस बात की तो पुष्टि की जा सकती है कि कुतुबुद्दीन के द्वारा नेतृत्व वाली घुरिद की सेना ने जयचंद को पराजित किया था परंतु जयचंद की मृत्यु कैसे हुई इस बारे में रहस्य अभी भी बरकरार है।

क्या जयचंद को गद्दार कहना सही है?
जयचंद की मृत्यु कैसे हुई?

आइए जानते है इस संबंध में अलग-अलग इतिहासकारों ने अपने लेखों में क्या लिखा है।


यह माना जाता है कि जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के लिए मुहम्मद गौरी के साथ गठबंधन किया था (हालांकि अबुल फजल के अलावा कोई भी मुस्लिम इतिहासकार इस दावे को स्वीकार नहीं करता है)। कर्नल टॉड ने इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि "पाटन और कन्नौज के राजकुमारों ने मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए आमंत्रित किया था ।"

इस बात का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि राजा जयचंद ने भारत को धोखा देकर गौरी को भारत में आमंत्रित किया था।

पृथ्वीराज रासो में भी इस बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता है कि जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। अपितु ये सच जरूर है कि जयचंद ने युद्ध के दौरान पृथ्वीराज चौहान को कोई सहायता नहीं दी थी। 

Jaichand history in Hindi



दिल्ली के सिहासन के लिए एक प्रतिद्वंद्वी होने के नाते जयचंद के द्वारा पृथ्वीराज चौहान की सहायता ना करने को उनकी ईर्ष्या कहना सही होगा ना कि पृथ्वीराज चौहान के प्रति बदले की भावना।

कन्नौज के एक अंतिम शक्तिशाली हिंदू सम्राट के रुप में राजा जयचंद को जाना जाता है। कुछ मुस्लिम इतिहासकार उन्हें बनारस का राजा कहते हैं, बनारस को वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। इब्न असिर के अनुसार, बनारस के राजा भारत में सबसे महान शासक थे। उनके पास मालवा से लेकर चीन तक का सबसे बड़ा क्षेत्र भी था। 

शिलालेखों से संकेत मिलता है कि जयचंद एक बौद्ध साधु(भिक्षु) के शिष्य थे। अमीर खुसरो, अबुल फजल के अनुसार राजा जयचंद की मृत्यु गंगा नदी में डूबने से हुई थी।

आमिर खुसरो कहता है कि जयचंद को कुतुबुद्दीन ऐबक ने गंगा नदी में उतारा जिसके बाद जयचंद, गंगा नदी में ही डूब गए और उनकी मृत्यु हो गई इसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचंद के 14 हाथियों को भी अपने कब्जे में ले लिया था।

दूसरी ओर अबु फजल यह बताता है कि मोहम्मद गौरी ने जयचंद के विरुद्ध अपने हथियार उठाने को कहा था जिसके बाद जयचंद को उसके द्वारा किए जाने वाले संघर्ष के दौरान उसे गंगा नदी में डुबो दिया गया था।


कन्नौज के राजा जयचंद की मृत्यु के संबंध में कुछ फारसी ग्रंथों का कथन: 

तबकात-ए-नासिरी


1193-94 में मुहम्मद गौरी ने गजनी से कन्नौज और बनारस की ओर कूच किया और चंदावर में राजा जयचंद को पराजित किया। इस जीत के साथ गौरी ने  300 से अधिक हाथियों को उसके कब्जे में ले लिया था। 

रियाज़ु एस-सलातीन: 


जब इस बात की खबर फैलने लगी कि सुल्तान मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी ने कन्नौज और बनारस को जीतने के लिए अभियानों की योजना बनाई है, तो इसे सुनकर कुतुबुद्दीन ऐबक जिसे उस समय भारत का गवर्नर नियुक्त किया गया था, आगे बढ़ा और शाही सेनाओं की तैनाती कर दी। इसके बाद उसका युद्ध बनारस की सेना के राजा के साथ हुआ और अंततः बनारस का राजा जयचंद हार गया और मृत्यु को प्राप्त हुआ।  

जयचंद की मृत्यु के बाद गौरी ने बनारस में प्रवेश किया और बंगाल तक लूट मचाकर अपने साथ गहनों तथा अन्य कीमती वस्तुओं को गजनी अपने साथ ले गया। 

ताज-उल-मासीर, हसन निजामी 


गोरी और कुतुबुद्दीन ने 50,000 की सेना के साथ बनारस के राय से लड़ाई की। कुतुबुद्दीन को गौरी ने आदेश दिया कि वह एक हजार घुड़सवारों के साथ सेना को तैयार करे। 

इसके बाद गौरी की सेना हिंदू सेना पर टूट पड़ी। रेत के कणों जितनी असंख्य सेना के साथ, जयचंद मुगल सेना के खिलाफ आगे बढ़े। जयचंद, अपने सैनिकों और हाथियों की संख्या पर गर्व करते हुए, एक हाथी पर बैठे थे ठीक इसी समय वह एक तीर से घायल होकर वह जमीन पर गिर पड़े। इसके बाद राय का सिर काट कर भाले पर रखकर सेनापति को भेंट के रूप में दिया गया। इस युद्ध के बाद विशाल मात्रा में लूट की गई तथा 300 हाथियों को कब्जे में लिया गया। 


कामिलु-तवारीख: 


गौरी ने अपने दास कुतुब-उद-दीन को हिंद प्रांतों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए भेजा। इसके बाद कुतुबुद्दीन ने एक के बाद एक कई आक्रमण किए जिसमें उसने कई लोगों को मार दिया। मार काट करने के बाद जब कुतुबुद्दीन लूट और कैदियों के साथ वापस लौटने लगा तो जयचंद ने कुतुबुद्दीन के लौटने के रास्ते का पता कर अपनी सेना इकट्ठी कर ली। 

इसके बाद जयचंद 1194 में मुसलमानों के क्षेत्र में प्रवेश किया। शहाबुद्दीन गोरी ने भी इसका प्रतिरोध करते हुए अपनी सेना को चढ़ाई करने का आदेश दे दिया और दोनों सेनाएँ यमुना किनारे मिलीं। 

जयचंद के पास 700 प्रशिक्षित हाथियों के साथ हजारों की सेना भी थी। अंत में हिंदू भाग गए और मुसलमान जीत गए। 90 हाथियों को पकड़ा गया। राजा मारा गया और कोई भी उसके शरीर को पहचाने की स्थिति में नहीं था। 

जयचंद की पहचान सिर्फ इसी तथ्य के आधार पर की जा सकी कि उसके कमजोर दांत सोने के तार से जुड़े हुए थे। 

इब्न असिर राजा जयचंद के सफेद हाथी के बारे में भी लिखता है। इब्न असिर बताता है कि जब युद्ध के बाद कब्जे में लिए गए हाथियों को गौरी के सामने प्रस्तुत किया गया तो सभी हाथियों ने उसे सलाम किया सिर्फ जयचंद के सफेद हाथी को छोड़कर।


मिरात-ए-अहमदी


तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ने अन्य भारतीय शहरों पर हमला किया और धन संपदा के साथ महिलाओं और बच्चो को गुलाम बनाकर उन्हें अपने सेनापति गौरी के पास पेशावर भेजने लगा। 

जयचंद हिन्दुओं पर होने वाली क्रूरता से बहुत नाराज़ थे और इसका प्रतिशोध लेने के लिए दृढ़ थे। इसके बाद जयचंद ने भी मुस्लिम संपत्ति पर धावा बोल दिया और बहुत सी धन संपदा लूट ली।  

गौरी के द्वारा कब्जा किए गए शहरों को आज़ाद कराने के लिए जयचंद ने 700 हाथियों तथा 10 हजार की घुड़सवार सेना तैयार की।

सुल्तान गौरी ने जब इसके बारे में सुना तो वह तुरंत भारत लौट आया सैनिकों के साथ भारत लौट आया तथा कुतुबुद्दीन के साथ युद्ध की रणनीति तैयार की। गौरी की सेना चंदावर और इटावा के बीच स्थित यमुना की ओर बढ़ीं और हिंदुओं से मिलीं। 

इस युद्ध में जयचंद मारा गया। युद्ध के बाद तब तक उनकी मृत्यु का पता नहीं चला, जब तक कि उनके अनुयायियों ने दांत पर लगे सोने के तार से उनकी पहचान नहीं की। 

वहां मौजूद 700 हाथियों में से 90 को पकड़ लिया गया। जब युद्ध के बाद कब्जे में लिए गए हाथियों को सुल्तान के सामने पेश किया गया तो एक सफेद हाथी ने सुल्तान को श्रद्धांजलि देने से इनकार कर दिया था। 

तारिख-ए-फ़रिश्ता 


कुतुबुद्दीन उस सेना का सेनापति था जिसने जयचंद को पराजित किया था। 

कुतुबुद्दीन एक धनुर्धर था जिसका जयचंद से सामना हुआ और उसने तीर चलाकर उनकी आंख को फोड़ दिया। इससे उनकी मृत्यु हो गई। उनके मृत शरीर की पहचान के लिए उनके कृत्रिम दांतों का इस्तेमाल किया गया था जो कि एक जो कि एक स्वर्ण के तार से आपस में जुड़े हुए थे।

गौरी युद्ध के बाद बनारस की सीमा तक गया और लूट के सामान को 4,000 ऊंटों पर लाद दिया। 

कुतुबुद्दीन ने गौरी को 300 से अधिक हाथी भेंट किए जो कि उसने बनारस के राजा को युद्ध में पराजित करने के बाद कब्जे में लिए थे। 

मोहम्मद गौरी ने सफेद हाथी को कुतुब-उद्दीन को उपहार के रूप में भेंट किया, और उसने कुतुबुद्दीन को अपना पुत्र कहकर संबोधित किया। उसके बाद कुतुबुद्दीन हर दिन इस हाथी की सवारी करता था। 

गोरी ने बनारस पर कब्जा किया(तारीख ए फरिश्ता)

जयचंद की मृत्यु के बाद मोहम्मद गोरी ने असनी के किले पर अधिकार कर लिया जहां जयचंद का खजाना रखा गया था। 

दुर्ग पर कब्जा करने के बाद मोहम्मद गोरी ने बंगाल तक लूट की और हजारों मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ा और कीमती वस्तुओं तथा लूट के माल को 4000 ऊंटों पर लाद कर गजनी भेजा तथा बनारस को अपने अधीन कर लिया।

हालांकि अतुल कृष्ण सूर का दावा है कि कन्नौज पर मुहम्मद गोरी ने कब्जा नहीं किया था। हरिश्चंद्र जो कि जयचंद का पुत्र था, 1194 में कन्नौज का शासक बना। इल्तुमिश ने आखिरकार 1226 में कन्नौज पर कब्जा किया। 

इतिहास के इन सभी स्त्रोतों को अध्ययन करने के बाद भी यह रहस्य बना हुआ है कि क्या जयचंद की मृत्यु युद्ध के मैदान में हुई या फिर गंगा में डूबने से।





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