मारवाड़ के रक्षक-दुर्गादास राठौड़ का इतिहास (कहानी) । veer durgadas rathore history in Hindi

मारवाड़ के रक्षक-दुर्गादास राठौड़ का इतिहास (कहानी) । veer durgadas rathore history in Hindi

दुर्गादास राठौड़ की कहानी (वीर दुर्गादास राठौड़ का इतिहास-दुर्गादास राठौड़ की कथा) । Veer Durgadas Rathore history in Hindi (Durgadas Rathore story in Hindi)


इस पोस्ट में आप मारवाड़ के एक स्वामी भक्त सेवक, एक वीर योद्धा, एक स्वाभिमानी व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के बारे में जानेंगे। 
दुर्गादास राठौड़ जो यदि मारवाड़ में नहीं होते तो शायद मारवाड़ राज्य का इतिहास ऐसा नहीं होता जैसा कि आज है। 
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वीरवर दुर्गादास राठौड़ के बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने यह कहा है कि दुर्गादास राठौड़ को मुगलों की शक्ति और मुगलों का धन भी उन्हें अपने रास्ते से नहीं डिगा सका। 

कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्गादास राठौड़ के बारे में कहा है कि यह राठौड़ों के यूलिसेस थे। यूलिसेस ग्रीस के एक बहुत बड़े हीरो थे। इसके अतिरिक्त दुर्गादास राठौड़ को मारवाड़ का अणबिंदिया मोती और मारवाड़ का उद्धारक भी कहा जाता है। 

वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म कब हुआ और दुर्गादास राठौड़ का बचपन

When was Durgadas Rathore born(Durgadas Rathore birth/ durgadas Rathore's childhood in Hindi/Durgadas Rathore jayanti


13 अगस्त सन 1638 को मारवाड़ रियासत के सालवा गांव में आसकरण और नैतकंवर के घर पर एक बालक का जन्म हुआ और यही बालक वीर दुर्गादास राठौड़ थे। 

दुर्गादास राठौड़ के पिता आसकरण जो उस समय जोधपुर के शासक महाराजा जसवंत सिंह के दरबार में मंत्री हुआ करते थे तथा दुनेवा/द्रुनेवा जागिर के जागीरदार हुआ करते थे।

जोधपुर के शासक जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद मारवाड़ और औरंगजेब के मध्य हुए संघर्ष को यदि स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है तो उसका कारण यही वीरवर दुर्गादास राठौड़ है।

दुर्गादास राठौड़ के पिता आसकरण अपनी पत्नी (दुर्गादास राठौड़ की मां) से बहुत नाराज थे और आसकरण ने दोनों को लगभग अकेला ही छोड़ दिया था। इस वजह से दुर्गादास राठौड़ उनकी मां के साथ ही रहते थे।

दुर्गादास और उनकी मां अपना पालन पोषण करने के लिए लुनावे गांव में कृषि किया करते थे।


दुर्गादास राठौड़ का राइका के साथ विवाद

Durgadas Rathore's dispute with Raika


एक बार एक राइका जो कि ऊंटों के पशुपालक होते हैं, ने दुर्गादास राठौड़ के खेत में अपने ऊंट चरा दिए। जिसके कारण दुर्गादास राठौड़ की फसल को काफी नुकसान पहुंचा। जब दुर्गादास राठौड़ ने इस बात की शिकायत की और राइका से बात की तो राइका ने अपनी गलती मानने के बजाय दुर्गादास को बुरा भला कहा और ना केवल दुर्गादास राठौड़ को बुरा भला कहा बल्कि जोधपुर के शासक महाराजा जसवंत सिंह के बारे में भी अपशब्द कहे।

अपने राजा और राज्य के लिए इस तरह की बात सुनकर दुर्गादास राठौड़ का खून उबाल मारने लगा और इन्होंने अपनी कटार निकालकर राइका की हत्या कर दी। इसके बाद जब दुर्गादास राठौड़ के इस अपराध को महाराजा जसवंत सिंह के दरबार में ले जाया गया वहां पर महाराजा जसवंत सिंह के पास में ही इनके पिता आसकरण भी खड़े थे। जब महाराजा जसवंत सिंह ने आसकरण से पूछा कि क्या यह बालक तुम्हारा पुत्र है तो आसकरण ने कहा कि महाराज कुपुत्र को पुत्र नहीं कहा जाता।

इसके बाद महाराजा जसवंत सिंह ने दुर्गादास राठौड़ से उनके इस अपराध के बारे में पूछा कि क्या आपने इस राइका की हत्या की है तो दुर्गादास राठौड़ ने बड़ी निर्भीकता से कहा - हां महाराज मैंने ही उस राइका की हत्या की है, मैने उस राइका की हत्या इसलिए की है क्योंकि वह आपके और आपके राज्य के बारे में गलत बात कर रहा था और वह मुझसे सहन नहीं हुआ इस कारण मैंने उसकी हत्या कर दी। 

महाराजा जसवंत सिंह दुर्गादास राठौड़ की निर्भीकता से बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने दुर्गादास राठौड़ को अपने पास बुलाया और उनकी पीठ थपथपाई और कहा कि देखना आगे चलकर यही बालक एक दिन मारवाड़ का उद्धारक बनेगा और हुआ भी ऐसा।


महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद मारवाड़ के संकटमोचक वीरवर दुर्गादास राठौड़

Durgadas- the troubleshooter of Marwar after the death of Maharaja Jaswant Singh



28 नवंबर 1678 में जोधपुर के शासक महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु जमरूद (अफगानिस्तान) में हो गई।
महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उनका कोई भी उत्तराधिकारी जीवित नहीं था। महाराजा जसवंत सिंह की दो पत्नियां थी जादम और नरुकी उस समय गर्भवती थी। महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद में उनसे पुत्र उत्पन्न हुए। 

महाराजा जसवंत सिंह की पत्नी जादम से उत्पन्न हुए पुत्र का नाम अजीतसिंह रखा गया तथा महाराजा जसवंत सिंह की अन्य पत्नी नरुकी से उत्पन्न हुए पुत्र का नाम दलथंबन/दलभंजन रखा गया जिनकी बाद में मृत्यु हो गई थी।

जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने जोधपुर को खालसा घोषित कर दिया था। औरंगजेब ने जसवंत सिंह के भाई अमरसिंह राठौड़ के पौत्र इंद्रसिंह राठौड़ को जोधपुर का राज्य दे दिया था और इंद्रसिंह राठौड़ को तो केवल कहने को जोधपुर का शासक बनाया था जबकि वास्तव में वहां की व्यवस्था मुगल अधिकारी ही देखा करते थे। 

इस प्रकार जब धीरे-धीरे जोधपुर रियासत मुगल अधीनता की ओर जा रही थी ऐसे में वीरवर दुर्गादास राठौड़ ने महाराजा जसवंत सिंह के पुत्र अजीतसिंह को जोधपुर का शासक बनाने को लेकर एक लंबा संघर्ष किया और लंबा संघर्ष करने के बाद उन्होंने महाराजा अजीत सिंह को जोधपुर का शासक बना दिया। 

जब महाराजा जसवंत सिंह की रानियों ने अजीत सिंह और दलभंजन को जन्म दिया तो राठौड़ सरदार उन पुत्रों को लेकर औरंगजेब के पास दिल्ली पहुंचे।

औरंगजेब ने अजीतसिंह को जोधपुर का शासक बनाने की अपेक्षा इंद्रसिंह राठौड़ को जोधपुर का शासक बना दिया। इसके अलावा जोधपुर की व्यवस्था के लिए मुगल अधिकारियों की नियुक्ति भी कर दी तथा औरंगजेब का व्यवहार अजीतसिंह, उनकी माता और राजपरिवार के लिए क्रूर होता जा रहा था।

इसके बाद जब यह लगभग निश्चित हो गया कि औरंगजेब अजीत सिंह की हत्या कर देगा तब दुर्गादास राठौड़ ने कूटनीति का प्रयोग करते हुए अन्य सरदारों के साथ तथा उनके सहयोग से अजीत सिंह को तुरंत दिल्ली से निकालकर मारवाड़ लेकर आ गए। अजीत सिंह को दिल्ली से मारवाड़ तक लाने में बहुत सारे योद्धाओं ने अपने प्राणों को गंवा दिया। दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह को दिल्ली से निकालकर सिरोही के कालिंदी नामक जगह पर रखा। 

यहां जयदेव ब्राह्मण के यहां उनकी परवरिश करवाई गई लेकिन जब मुगल सेना को जैसे ही अजीत सिंह की खबर मिली वैसे ही दुर्गादास राठौड़ ने मेवाड़ के शासक महाराणा राजसिंह से इस संबंध में बात की और महाराणा राजसिंह ने अपनी रियासत की केलवा जागीर का पट्टा इन्हे दे दिया।

दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह की सुरक्षा तो की ही और अजीत सिंह को शासक बनाने को लेकर जीवन भर संघर्ष भी करते रहे इसके साथ साथ दुर्गादास राठौड़ की ही यह कूटनीति थी कि जब औरंगजेब ने अपने पुत्र शहजादा अकबर को (औरंगजेब के पुत्र का नाम भी शहजादा अकबर था) मारवाड़ रियासत पर आक्रमण करने के लिए भेजा तो यहां पर दुर्गादास राठौड़ और मेवाड़ के शासक महाराणा राजसिंह की कूटनीति से शहजादा अकबर अपने पिता औरंगजेब के विरुद्ध हो गया और 1 जनवरी 1681 को शहजादा अकबर ने नाडौल (पाली) में स्वयं को अगला मुगल बादशाह घोषित कर दिया। 

महाराणा राजसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराणा जयसिंह ने औरंगजेब के साथ जब संधि कर ली थी और मारवाड़ रियासत को संघर्ष करने के लिए अकेला छोड़ दिया था तो ऐसे समय में दुर्गादास राठौड़, औरंगजेब के पुत्र शहजादा अकबर को लेकर मराठों के पास सहायता के लिए चले गए जिसके कारण औरंगजेब का ध्यान भटका और मारवाड़ रियासत पर अपना ध्यान केंद्रित करने की बजाय वह दक्षिण में मराठों से संघर्ष करने निकल पड़ा। 

इस प्रकार दुर्गादास राठौड़ ने मारवाड़ को बचाए रखा और दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में ही मारवाड़ के सरदार मुगलों पर छापामार नीति से आक्रमण करते रहे। 

अजीत सिंह के द्वारा दुर्गादास राठौड़ को राज्य से निष्कासित करना

The expulsion of Durgadas Rathore from the state by Ajit Singh


जिन अजीत सिंह को शासक बनाने को लेकर जो दुर्गादास राठौड़ जीवन भर संघर्ष करते रहे उनके जीवन के अंतिम समय में अजीत सिंह ने दुर्गादास राठौड़ को मारवाड़ के राज्य से निष्कासित कर दिया।

स्वाभिमानी वीर योद्धा दुर्गादास राठौड़ अपने परिवार सहित मारवाड़ को छोड़कर मेवाड़ चले गए उस समय मेवाड़ के शासक महाराणा अमरसिंह थे और महाराणा अमरसिंह ने विजयनगर नाम की जागीर का पट्टा दुर्गादास राठौड़ को दे दिया। बाद में दुर्गादास राठौड़ रामपुरा(जो कि मेवाड़ में ही आता है) की ओर गए। 

दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु (वीर दुर्गादास राठौड़ की छतरी)

Death of Durga Das Rathore (Durgadas Rathore chatri)


दुर्गादास राठौड़ अपने जीवन के अंतिम समय में रामपुरा से सन 1717 में उज्जैन की ओर चले गए और वहीं पर रहते हुए 22 नवंबर 1718 में दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु हुई और उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे दुर्गादास राठौड़ का अंतिम संस्कार किया गया और यहीं पर दुर्गादास राठौड़ की छतरी बनी हुई है।


डमबक डमबक ढोल बाजे, 
दे दे ठोर नगाड़ा कि,
आसे घर दुर्गा नही होतो,
सुन्नत होती सारा की।

यह यह कविता लिखी गई है जाट समुदाय के एक व्यक्ति राम के द्वारा। 

इसका अर्थ यह है कि यदि आसकरण के घर में वीरवर दुर्गादास राठौड़ का जन्म नहीं होता तो पूरे मारवाड़ की शामत आ जाती।

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